Sunday, February 7, 2010

Yah Kal-Kal Chhal-Chhal Bahatee (यह कल-कल छल-छल बहती)

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगाधारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा ।
यह पुण्य-प्रवाह हमारा ॥

हम इसके लघुतम जल-कण, बनते-मिटते हैं क्षण-क्षण ।
अपना अस्तित्व मिटाकर, तन-मन-धन करते अर्पण ।
बढ़ते जाने का शुभ प्रण, प्राणों से हमको प्यारा ॥१॥

इस धारा में मिल-जुल कर, वीरों की राख बही है ।
इस धारा में कितने ही, ऋषियों ने शरण गही है ।
इस धारा की गोदी में, खेला इतिहास हमारा ॥२॥

यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्र-प्रवाह प्रबल है ।
शुभ संस्कृति का परिचायक, भारात माँ का आँचल है ।
हिन्दू की चिर जीवन का, मर्यादा धर्म सहारा ॥३॥

क्या इसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएँ ।
कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बन कर आए ।
ढह जाएंगे गिरि-पर्वत, काँपे भूमंडल सारा ॥४॥

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगाधारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा ।
यह पुण्य प्रवाह हमारा ॥


! भारत माता की जय !!

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