यह भगवा राष्ट्र-निशान फहरता प्यारा |
बरसाता पावित्र्य तेज की धारा ॥ध्रु॥
रक्तिमा अरुण संध्या का,
दीप्तवर्ग अग्निशिखा का,
यह तिलक मातृभूमि का,
ऋषि-मुनियों का, तपस्वियों का, संतों का बल सारा ॥१॥
यह असुरों का मर्दक है,
यह सुजानों का चालक है,
यह विनतों का तारक है,
रिपु-रुधिर रंग से रंजित है वह, नरवीरों का प्यारा ॥२॥
वीरों ने इसे उठाया,
राजाओं ने फहराया,
सम्राटों ने लहराया,
अगणित माता-सत्पुत्रों ने, इसपर तन-मन वारा ॥३॥
चारित्र्य हमें सिखलाता,
त्याग का मार्ग दिखलाता,
सन्देश शौर्य का देता,
इस नील-गगन में ऊँचा फहरे, मातृभूमि का तारा ॥४॥
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!! भारत माता की जय !!
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