हम स्वदेश के सपूत, आज पग बढ़ा चलें ॥ध्रु॥
हाथ में अंगार है,
हर चरण पहाड़ है,
हम बढ़े जिधर उधर, आंधियाँ ही बढ़ चलें ॥१॥
मातृभूमि तू न डर
धीर धर विश्वास कर,
शत्रु शीश बीनती है, यह दुधार जब चले ॥२॥
है यहाँ कलह न द्वेष,
एक प्राण है स्वदेश,
जय हमारे हाथ में है, हम सभी विचार लें ॥३॥
हम स्वदेश के सपूत, आज पग बढ़ा चलें ॥
!! भारत माता की जय !!
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