Tuesday, February 9, 2010

Ab Jaag Utho (अब जाग उठो)

अब जाग उठो कमर कसो, मंज़िल की राह बुलाती है ।
ललकार रही हमको दुनियां, भेरी आवाज़ लगाती है ॥ध्रु॥

है ध्येय हमारा दूर सही, पर साहस भी तो क्या कम है ।
हमराह अनेकों साथी हैं, कदमों में अंगद का दम है ।
सोने की लंका राख करे, वह आग लगानी आती है ॥१॥

पग-पग पर कांटे बिछे हुए, व्यवहार कुशलता हम में है ।
विश्वास विजय का अटल लिए, निष्ठा कर्मठता हम में है ।
विजयी पुरुषों की परम्परा, अनमोल हमारी थाती है ॥२॥

हम शेर शिवा के अनुगामी, राणा प्रताप की आन लिए ।
केशव-माधव का तेज लिए, अर्जुन का शर-सन्धान लिए ।
संगठन तंत्र की परम्परा, वैभव का साज सजाती है ॥३

!! भारत माता की जय !!

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