लेकर भगवा ध्येय-मार्ग पर, बढ़े चले अविराम ॥ध्रु॥
वैदिक ऋषियों के यज्ञों की, इसमें दिखती ज्वाला,
इसमें तो ऊषा ने अपना, अरुण रंग है डाला ।
इसका दर्शन कल्मष हरता, करता मन निष्काम ॥१॥
यह आर्यों की विजय-पताका, ऋषियों का वरवेश,
त्याग और शुचिता का देता, सबको शुभ सन्देश ।
लौकिक आध्यात्मिक उन्नति का, उभय प्रेरणा धाम ॥२॥
गढ़ चित्तौर की जौहर ज्वाला, इसमें जलती पाते,
देख इसे बलिदान अनेकों, याद हमें हो आते ।
अर्जुन-रथ और दुर्ग-दुर्ग पर, फहरा यह अविराम ॥३॥
इसकी छाया में निराशा, भीति कभी न सताती,
स्वर्णिम गैरिक छटा ह्रदय में, अमिट शक्ति उपजाती ।
फहराएंगे दसों दिशा में, यह पावन सुख-धाम ॥४॥
!! भारत माता की जय !!
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