शून्य-पथ पर बढ़ रही थी, देश की उठती जवानी ।
शून्य में लय हो रही थी, राष्ट्र जीवन की कहानी ।
तेज प्रगटा था उसी क्षण,
धर्म आया द्रवित होकर,
सम्पर्क-अमृत को पिलाकर,
शक्ति का नव-सृजन करने,
ध्येय आया देह लेकर ॥१॥
विषमता में एकता का, सूत्र खंडित हो रहा था ।
दिव्याधिष्ठित राष्ट्र-जीवन, शक्ति का क्षय हो रहा था ।
संस्कृति का स्नेह प्रगटा,
धर्म आया द्रवित होकर,
संपर्क-अमृत को पिलाकर,
शक्ति का नव-सृजन करने,
ध्येय आया देह लेकर ॥२॥
परकीय जीवन की लहर में, बह रहा था देश अपना ।
आत्म-विस्मृति के भंवर में, हत-बल हुआ था देश अपना ।
विश्व प्रगटा था उसी क्षण,
धर्म आया द्रवित होकर,
संपर्क-अमृत को पिलाकर,
शक्ति का नव-सृजन करने,
ध्येय आया देह लेकर ॥३॥
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!! भारत माता की जय !!
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