भेद भावना तामस हटेगा, समरसता का अमृत बरसेगा ।
हिंदु जगेगा, विश्व जगेगा ॥ध्रु॥
हिंदु सदा से विश्व-बन्धु है, जड़-चेतन अपना माना है ।
मानव, पशु, तरु, गिरि, सरिता में, एक ब्रह्म को पहचाना है ।
जो चाहे जिस पथ से आए, साधक केंद्र-बिंदु पहुंचेगा ॥१॥
इसी सत्य को विविध पक्ष से, वेदों में हमने गाया था ।
निकट बिठाकर इसी तत्त्व को, उपनिषदों में समझाया था ।
मंदिर, मठ, गुरुद्वारे जाकर, यही ज्ञान सत्संग मिलेगा ॥२॥
हिंदु धर्म वह सिन्धु अतल है, जिसमें सब धारा मिलती हैं ।
धर्म, अर्थ अरु काम, मोक्ष की, किरणें लहर-लहर खिलती हैं ।
इसी पूर्ण में पूर्ण जगत का, जीवन मधु सम्पूर्ण फलेगा ॥३॥
इस पावन हिंदुत्व सुधा की, रक्षा प्राणों से करनी है ।
जग को आर्यशील की शिक्षा, निज जीवन से सिखलानी है ।
द्वेष-त्वेष भय सभी हटाने, पाञ्चजन्य फिर से गूंजेगा ॥४॥
हिंदु जगे तो विश्व जगेगा, मानव का विश्वास जगेगा ।
भेद भावना तामस हटेगा, समरसता का अमृत बरसेगा ।
हिंदु जगेगा, विश्व जगेगा ॥
!! भारत माता की जय !!
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