तप-तपस्या-साधना का, शौर्य का परिणाम भारत ॥ध्रु॥
स्वर लहरियां उठ रहीं हैं, देश तब आराधना की ।
कोटि हृदयों में उठी है, चाह तेरी साधना की ।
इक-इक अलौकिक पुंज-सी हो, छवि तेरी निष्काम भारत ॥१॥
ऋषि-मुनि की यही धरा है, देव-गण की ये स्थली है ।
त्याग-करुणा-वीरता की, यहाँ पर संस्कृति पली है ।
भरत भारत, बुद्ध भारत, कृष्ण भारत, राम भारत ॥२॥
राष्ट्र का निर्माण पोषण, बुद्धि है इसकी कहानी ।
आन पर बलिदान की है, प्रेरणामय यह निशानी ।
राव केशव के सपन का, तीर्थ चारों धाम भारत ॥३॥
संगठन का मंत्र गुंजित, शौर्यमय आनंद छाया ।
हर ह्रदय को कर प्रफुल्लित, जागरण का पर्व आया ।
नव उषा से अब सुगन्धित, हो उठे हर ग्राम भारत ॥४॥
नमन है इस मातृ भू को, विश्व का सिरमौर भारत ।
तप-तपस्या-साधना का, शौर्य का परिणाम भारत ॥
!! भारत माता की जय !!
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