धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥
धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥ध्रु॥
सोती दुनिया जाग रही थी, दूर निराशा भाग रही थी,
मन में जलती आग रही थी, उस क्षण में हम खो बैठे हैं,
तुमको नर-वर श्रीमान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥१॥
दबी राख में छिपे अग्नि-कण, उन्हें शोध कर लिया वीर-प्रण,
इन्हीं कणों से विजय करूँ रण, इधर पूर्ती का समय, उधर हो !
अकस्मात् दीपक निर्वाण, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥२॥
वे पत्थर अब मूर्त्ति बने हैं, थे अपयश अब कीर्ति बने हैं,
आकांक्षा की पूर्ति बने हैं, अरे देव क्या चला गया वह,
कलाकार मन्त्रज्ञ महान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥३॥
चला-चला जा यहाँ कोटि-शत, देख रहे हैं वाट वीरव्रत,
जो माता के लिए हुत, देख वहीं से अपने पथ के पथिकों का,
प्रचालन रण-गान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥४॥
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!! भारत माता की जय !!
बहुत ही सराहनीय कार्य ।
ReplyDeleteऔर भी स्वयं सेवक जो गीत रचना करना जानते है , उनसे विनम्र निवेदन है कि नए नए शाखा गीतों की रचना कर इस ब्लॉग में पोस्ट करें।
बहुत सुन्दर राष्ट्र सेवा का यह कार्य !
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