Saturday, February 6, 2010

Dharatee Kee Shaan (धरती की शान)

धरती की शान तू है मनु की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे ।
मनुष्य तू बड़ा महान है,
भूल मत ! मनुष्य तू बड़ा महान है ॥ध्रु॥

तू जो चाहे पर्वत-पहाड़ों को फोड़ दे ।
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे ।
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे ।
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे ।
अमर तेरे प्राण मिला तुझको वरदान,
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे ॥१॥

नयनों से ज्वाल तेरी गति में भूचाल ।
तेरी छाती में छुपा महाकाल है ।
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरी सा भाल ।
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है ।
निज को तू जान ज़रा शक्ति पहचान,
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे ॥२॥

धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर ।
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले ।
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके ।
तू जो अगर हिम्मत से काम ले ।
गुरु सा मतिमान पवन सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊंची उड़ान है रे ॥३॥

धरती की शान तू है मनु की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे ।
मनुष्य तू बड़ा महान है,
भूल मत ! मनुष्य तू बड़ा महान है ॥

!! भारत माता की जय !!

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