दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी,
जीवन भर अविचल चलता है ||
अमर तत्व की अमिट साधना, प्राणों में उत्सर्ग कामना |
जीवन का शाश्वत-व्रत लेकर, साधक हँस कण-कण गलता है ||२||
पतझर के झंझावातों में, जग के घातों, प्रतिघातों में |
सुरभि लुटाता सुमन सिहरता, निर्जनता में भी खिलता है ||४||
जीवन भर अविचल चलता है ||
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जीवन भर अविचल चलता है ||
सज-धज कर आए आकर्षण, पग-पग पर झूमते प्रलोभन |
होकर सबसे विमुख बटोही, पथ पर संभल-संभल चलता है ||१||
अमर तत्व की अमिट साधना, प्राणों में उत्सर्ग कामना |
जीवन का शाश्वत-व्रत लेकर, साधक हँस कण-कण गलता है ||२||
सफल-विफल और आस-निराशा, इसकी ओर कहाँ जिज्ञासा |
बीहड़ता में राह बनाता, राही मचल-मचल चलता है ||३||
सुरभि लुटाता सुमन सिहरता, निर्जनता में भी खिलता है ||४||
जीवन भर अविचल चलता है ||
!! भारत माता की जय !!
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