तुमने सोता देश जगाया, सोते युवक जगाए ।
धर्म-कर्म के, संघ-तत्व के, अनुपम पाठ पढ़ाए ॥ध्रु॥
अपनी संस्कृति, धर्म, जाति का गौरव भी सिखलाया ।
शक्ति, संगठन, राष्ट्र-प्रेम को जीवन-लक्ष्य बनाया ।
कर्मयोग के पथिक तुम्हारे पथ पर जग चल पाए ॥२॥
केशव, स्वप्न तुम्हारा कितने ही नयनों में छाया ।
और साधना के पथ पर ही यौवन बढ़ता आया ।
बाधाओं से मिले प्रेरणा, माँ का दीप जलाए ॥४॥
धर्म-कर्म के, संघ-तत्व के, अनुपम पाठ पढ़ाए ॥ध्रु॥
घोर दासता का बंधन था, संघ मंत्र के दाता ।
स्वार्थ-तिमिर में देश फँसा था, नव-भारत निर्माता ।
नवल-सृष्टि की तुमने केशव, जीवन दीप जलाए ॥१॥
अपनी संस्कृति, धर्म, जाति का गौरव भी सिखलाया ।
शक्ति, संगठन, राष्ट्र-प्रेम को जीवन-लक्ष्य बनाया ।
कर्मयोग के पथिक तुम्हारे पथ पर जग चल पाए ॥२॥
मिट्टी से तुम मूर्त्ति बनाकर, प्राण फूँक देते थे ।
युवकों को तुम स्नेह-शक्ति से दिव्य-दृष्टि देते थे ।
घर-घर में कर्मवीरों को तुम निर्मित कर पाए ॥३
केशव, स्वप्न तुम्हारा कितने ही नयनों में छाया ।
और साधना के पथ पर ही यौवन बढ़ता आया ।
बाधाओं से मिले प्रेरणा, माँ का दीप जलाए ॥४॥
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!! भारत माता की जय !!