Wednesday, February 10, 2010

Tumne Sotaa Desh (तुमने सोता देश)

तुमने सोता देश जगाया, सोते युवक जगाए ।
धर्म-कर्म के, संघ-तत्व के, अनुपम पाठ पढ़ाए ॥ध्रु॥

                    घोर दासता का बंधन था, संघ मंत्र के दाता ।
                    स्वार्थ-तिमिर में देश फँसा था, नव-भारत निर्माता ।
                    नवल-सृष्टि की तुमने केशव, जीवन दीप जलाए ॥१॥

अपनी संस्कृति, धर्म, जाति का गौरव भी सिखलाया ।
शक्ति, संगठन, राष्ट्र-प्रेम को जीवन-लक्ष्य बनाया ।
कर्मयोग के पथिक तुम्हारे पथ पर जग चल पाए ॥२॥

                    मिट्टी से तुम मूर्त्ति बनाकर, प्राण फूँक देते थे ।
                    युवकों को तुम स्नेह-शक्ति से दिव्य-दृष्टि देते थे ।
                    घर-घर में कर्मवीरों को तुम निर्मित कर पाए ॥३

केशव, स्वप्न तुम्हारा कितने ही नयनों में छाया ।
और साधना के पथ पर ही यौवन बढ़ता आया ।
बाधाओं से मिले प्रेरणा, माँ का दीप जलाए ॥४॥
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                 !! भारत माता की जय !!

Lakshya Tumhaaraa (लक्ष्य तुम्हारा)

लक्ष्य तुम्हारा प्राप्त किए बिन चैन हम नहीं लेंगे ।
हमें मिली प्रेरणा तुम्हारी पावनतम स्मृति की ॥ध्रु॥

                    जीवन भर संगठन-कार्य को करके बने तपस्वी,
                    पुण्य साध थी एकमेव, यह भारत बने यशस्वी ।
                    हिमगिरी से कन्याकुमारी तक, संस्कृति की जय बोली,
                    राष्ट्र-भक्त थे, ज्ञान-मूर्त्ति थे, ये तत्त्वज्ञ मनस्वी ।
                    है हिंदुत्व राष्ट्र का द्योतक ले विचार यह पावन,
                    हमें मिली प्रेरणा श्रेष्ठतम भारतीय संस्कृति की ॥१॥

प्रभुता का ऐश्वर्य तुम्हारे मन को मोह न पाया,
अहंकार तब प्रतिछाया तक आने में सकुचाया ।
कार्य अहर्निश, कार्य निरंतर, कार्य देश के हित में,
करते रहना ही जीवन है, श्रेष्ठ मंत्र सिखलाया ।
त्याग अहं को कार्य करेंगे सतत राष्ट्र पूजा का,
हमें मिली प्रेरणा तुम्हारी शांत सुमधुर पद्धति की ॥२॥

                    ध्येय तुम्हारा निज जीवन में प्रतिबिंबित कर लेंगे,
                    जीवन अपना कोटि जन्म तक राष्ट्र-कार्य में देंगे ।
                    संघ-मंत्र का गूंजन प्रतिक्षण प्रतिपल आजीवन में,
                    राष्ट्र-देव की प्रतिमा उर में प्रस्थापित कर लेंगे ।
                    हे ! केशव तेरे अनुगामी व्रत लेकर बढ़ते हैं,
                    रोक न पाएगा कोई भी बंधन राह प्रगति की ॥३॥
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                  !! भारत माता की जय !!

Humein Veer केशव (हमें वीर केशव)

हमें वीर केशव मिले आप जबसे, नयी साधना की डगर मिल गयी है ॥ध्रु॥

                    भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम, न सोचा कभी देश क्या, धर्म क्या है?
                    न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में, हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है?
                    दिया ज्ञान मगर जबसे आपने है, निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥

समाया हुआ घोर तम सर्वदिक था, सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था ।
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला, ह्रदय आपका हे तपी जूझता था ।
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग, हमें प्रेरणा की डगर मिल गई है ॥२॥

                    बहुत थे दुखी हिन्दू निज देश में ही, युगों से सदा घोर अपमान पाया ।
                    द्रवित हो गए आप यह दृश्य देखा, नहीं एक पल को कभी चैन पाया ।
                    ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फूट निकली, हमें संगठन की डगर मिल गई है ॥३॥

करेंगे हम पुनः सुखी मातृ-भू को, यही आपने शब्द मुख से कहे थे ।
पुनः हिन्दू का हो सुयश गान जग में, संजोए यही स्वप्न पथ पर बढ़ रहे थे ।
जला दीप ज्योतित किया मातृ-मंदिर, हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥

हमें वीर केशव मिले आप जबसे, नयी साधना की डगर मिल गयी है ॥
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                              !! भारत माता की जय !!

Shoonya-Path पर (शून्य-पथ पर)

                                       शून्य-पथ पर बढ़ रही थी, देश की उठती जवानी ।
                                       शून्य में लय हो रही थी, राष्ट्र जीवन की कहानी ।
                                                      तेज प्रगटा था उसी क्षण,
                                                      धर्म आया द्रवित होकर,
                                                      सम्पर्क-अमृत को पिलाकर,
                                                      शक्ति का नव-सृजन करने,
                                                      ध्येय आया देह लेकर ॥१॥


                                        विषमता में एकता का, सूत्र खंडित हो रहा था ।
                                        दिव्याधिष्ठित राष्ट्र-जीवन, शक्ति का क्षय हो रहा था ।
                                                      संस्कृति का स्नेह प्रगटा,
                                                      धर्म आया द्रवित होकर,
                                                      संपर्क-अमृत को पिलाकर,
                                                      शक्ति का नव-सृजन करने,
                                                      ध्येय आया देह लेकर ॥२॥


                                        परकीय जीवन की लहर में, बह रहा था देश अपना ।
                                        आत्म-विस्मृति के भंवर में, हत-बल हुआ था देश अपना ।
                                                      विश्व प्रगटा था उसी क्षण,
                                                      धर्म आया द्रवित होकर,
                                                      संपर्क-अमृत को पिलाकर,
                                                      शक्ति का नव-सृजन करने,
                                                      ध्येय आया देह लेकर ॥३॥

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                                                      !! भारत माता की जय !!

Poorna Karenge (पूर्ण करेंगे)

पूर्ण करेंगे हम सब केशव ! वह साधना तुम्हारी ।
आत्म-हवन से राष्ट्रदेव की, आराधना तुम्हारी ॥ध्रु॥

                    निशि-दिन तेरी ध्येय-चिंतना, आकुल मन की तीव्र वेदना ।
                    साक्षात्कार ध्येय का हो, यह मन-कामना तुम्हारी ॥१॥

कोटि-कोटि हम तेरे अनुचर, ध्येय-मार्ग पर हुए अग्रसर ।
होगी पूर्ण सशक्त राष्ट्र की, वह कल्पना तुम्हारी ॥२॥

                    तुझ-सी ज्योति हृदय में पावें, कोटि-कोटि तुझ-से हो जावें ।
                    तभी पूर्ण हो राष्ट्रदेव की, वह अर्चना तुम्हारी ॥३॥
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                               !! भारत माता की जय !!

Dhanya Tumhaaraa Jeevan-Daan (धन्य तुम्हारा जीवन-दान)

धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥
धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥ध्रु॥

                    सोती दुनिया जाग रही थी, दूर निराशा भाग रही थी,
                    मन में जलती आग रही थी, उस क्षण में हम खो बैठे हैं,
                    तुमको नर-वर श्रीमान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥१॥

दबी राख में छिपे अग्नि-कण, उन्हें शोध कर लिया वीर-प्रण,
इन्हीं कणों से विजय करूँ रण, इधर पूर्ती का समय, उधर हो !
अकस्मात् दीपक निर्वाण, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥२॥

                    वे पत्थर अब मूर्त्ति बने हैं, थे अपयश अब कीर्ति बने हैं,
                    आकांक्षा की पूर्ति बने हैं, अरे देव क्या चला गया वह,
                    कलाकार मन्त्रज्ञ महान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥३॥

चला-चला जा यहाँ कोटि-शत, देख रहे हैं वाट वीरव्रत,
जो माता के लिए हुत, देख वहीं से अपने पथ के पथिकों का,
प्रचालन रण-गान, धन्य तुम्हारा जीवन-दान ॥४॥
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             !! भारत माता की जय !!

Yah Bhagawaa Raashtra-Nishaan (यह भगवा राष्ट्र-निशान)

यह भगवा राष्ट्र-निशान फहरता प्यारा |
बरसाता पावित्र्य तेज की धारा ॥ध्रु॥

रक्तिमा अरुण संध्या का,
दीप्तवर्ग अग्निशिखा का,
यह तिलक मातृभूमि का,
ऋषि-मुनियों का, तपस्वियों का, संतों का बल सारा ॥१॥

यह असुरों का मर्दक है,
यह सुजानों का चालक है,
यह विनतों का तारक है,
रिपु-रुधिर रंग से रंजित है वह, नरवीरों का प्यारा ॥२॥

वीरों ने इसे उठाया,
राजाओं ने फहराया,
सम्राटों ने लहराया,
अगणित माता-सत्पुत्रों ने, इसपर तन-मन वारा ॥३॥

चारित्र्य हमें सिखलाता,
त्याग का मार्ग दिखलाता,
सन्देश शौर्य का देता,
इस नील-गगन में ऊँचा फहरे, मातृभूमि का तारा ॥४॥
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!! भारत माता की जय !!

Bhagawaa Dhwaj Hai (भगवा ध्वज है)

भगवा ध्वज है अखिल राष्ट्रगुरु, शत-शत इसे प्रणाम,
लेकर भगवा ध्येय-मार्ग पर, बढ़े चले अविराम ॥ध्रु॥

वैदिक ऋषियों के यज्ञों की, इसमें दिखती ज्वाला,
इसमें तो ऊषा ने अपना, अरुण रंग है डाला ।
इसका दर्शन कल्मष हरता, करता मन निष्काम ॥१॥

यह आर्यों की विजय-पताका, ऋषियों का वरवेश,
त्याग और शुचिता का देता, सबको शुभ सन्देश ।
लौकिक आध्यात्मिक उन्नति का, उभय प्रेरणा धाम ॥२॥

गढ़ चित्तौर की जौहर ज्वाला, इसमें जलती पाते,
देख इसे बलिदान अनेकों, याद हमें हो आते ।
अर्जुन-रथ और दुर्ग-दुर्ग पर, फहरा यह अविराम ॥३॥

इसकी छाया में निराशा, भीति कभी न सताती,
स्वर्णिम गैरिक छटा ह्रदय में, अमिट शक्ति उपजाती ।
फहराएंगे दसों दिशा में, यह पावन सुख-धाम ॥४॥

!! भारत माता की जय !!

Aaj Himaalaya Kee (आज हिमालय की)

आज हिमालय की चोटी से, ध्वज भगवा लहराएगा ।
जाग उठा है हिन्दू फिर से, भारत स्वर्ग बनाएगा ॥ध्रु॥

इस झंडे की महिमा देखो, रंगत अजब निराली है ।
इस पर तो ईश्वर ने डाली सूर्योदय की लाली है ।
प्रखर अग्नि में इसकी पड़, शत्रु स्वाहा हो जाएगा ॥१॥

इस झंडे को चन्द्रगुप्त ने हिन्दू-कुश पर लहराया ।
मरहटों ने मुग़ल-तख़्त को चूर-चूर कर दिखलाया ।
मिट्टी में मिल जाएगा जो इसको अकड़ दिखाएगा ॥२॥

इस झंडे की खातिर देखो प्राण दिए रानी झांसी ।
हमको भी यह व्रत लेना है, सूली हो या हो फांसी ।
बच्चा-बच्चा वीर बनेगा, अपना रक्त बहाएगा ॥३॥


!! भारत माता की जय !!

Tuesday, February 9, 2010

Aao Mil-kar (आओ मिलकर)

आओ हम सब मिलकर गाएं, जग जननी की गान ॥ध्रु॥

स्वर्ण-मुकुट मस्तक पर भाता,
चरणों में सागर लहराता,
मलय पवन जिसका गुण गाता,
सबसे न्यारा, जग का तारा, भारत देश महान ॥१॥

यहीं कृष्ण ने जन्म लिया था,
दुष्टों का संहार किया था,
जग को नव सन्देश दिया था,
लहर-लहर यमुना भी गाती, सुन लो इसके गान ॥२॥

चन्द्रगुप्त की जन्मभूमि यह,
राणा की भी मातृभूमि यह,
वीर शिवा की कर्मभूमि यह,
कोटि-कोटि वीरों ने इस पर, प्राण किए बलिदान ॥३॥

मातृभूमि हम सबकी प्यारी,
जगती में इसकी छवि न्यारी,
कोटि स्वर्ग इस पर बलिहारी,
इसकी रक्षा-हित हम कर दें, अर्पित तन-मन-प्राण ॥४॥

!! भारत माता की जय !!

Ab Jaag Utho (अब जाग उठो)

अब जाग उठो कमर कसो, मंज़िल की राह बुलाती है ।
ललकार रही हमको दुनियां, भेरी आवाज़ लगाती है ॥ध्रु॥

है ध्येय हमारा दूर सही, पर साहस भी तो क्या कम है ।
हमराह अनेकों साथी हैं, कदमों में अंगद का दम है ।
सोने की लंका राख करे, वह आग लगानी आती है ॥१॥

पग-पग पर कांटे बिछे हुए, व्यवहार कुशलता हम में है ।
विश्वास विजय का अटल लिए, निष्ठा कर्मठता हम में है ।
विजयी पुरुषों की परम्परा, अनमोल हमारी थाती है ॥२॥

हम शेर शिवा के अनुगामी, राणा प्रताप की आन लिए ।
केशव-माधव का तेज लिए, अर्जुन का शर-सन्धान लिए ।
संगठन तंत्र की परम्परा, वैभव का साज सजाती है ॥३

!! भारत माता की जय !!

Atal Chunouti (अटल चुनौती)

अटल चुनौती अखिल विश्व को, भला-बुरा चाहे जो माने,
डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर विपदाओं में सीना ताने ॥ध्रु॥

लाख-लाख पीढ़ियाँ लगीं तब हमने यह संस्कृति उपजाई,
कोटि-कोटि सिर चढ़े तभी इसकी रक्षा संभव हो पाई ।
हैं असंख्य तैयार स्वयं मिट इसका जीवन अमर बनाने,
डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर विपदाओं में सीना ताने ॥१॥

देवों की है स्फूर्ति ह्रदय में आदरयुक्त पुरखों का चिंतन,
परम्परा अनुपम वीरों की चरम साधकों के चिर साधन ।
पीड़ित शोषित दुखित बान्धवों के हमको हैं कष्ट मिटाने,
डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर विपदाओं में सीना ताने ॥२॥

नहीं विधाता नई सृष्टि के सीधी सच्ची स्पष्ट कहानी,
प्रेम कवच है त्याग अस्त्र है लगन धार आहुति है वाणी ।
सभी सुखी हों यही स्वप्न है मरकर भी यह सत्य बनाने,
डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर विपदाओं में सीना ताने ॥३॥

नहीं विरोधक रोक सकेंगे निंदक होवेंगे अनुगामी,
जन-जन इसकी वृद्धि करेगा इसकी गति न थमेगी थामी ।
बस इसकी हुंकार मात्र से दुष्ट लगेंगे आप ठिकाने,
जुटे हुए हैं इसीलिए हम राष्ट्रधर्म को अमर बनाने ॥४॥

!! भारत माता की जय !!

Sunday, February 7, 2010

Humko Desh Pukaar Rahaa Hai (हमको देश पुकार रहा है)

राष्ट्रभक्ति के अमर सिपाही, हमको देश निहार रहा है ।
हमको देश पुकार रहा है ॥ध्रु॥

अब भी बहुत घना अंधियारा, आंधी गरज-गरज कर चलती ।
कूल-कगारें चाट-चाट कर, मदमाती है नदी उछलती ।
साहस करके आगे आओ, जन-जन जीवन हार रहा है ॥१॥

ढहते पर्वत मिटती झीलें, चट्टानें अब टूट रहीं हैं ।
जीवन की हरियाली नीचे, विष की लपटें फूट रहीं हैं ।
महानाश के रंगमंच पर, मानव को आधार कहाँ है ॥२॥

कुरुक्षेत्र में खादी हुईं हैं, तीर चढ़ाए सभी सेनाएँ ।
पाञ्चजन्य भी गूँज उठा है, सहमी-सहमी हुई दिशाएँ ।
बढ़ो भरत-भू के सेनानी, गांडीव टंकार रहा है ॥३॥

जीवन-मृत्यु लड़े हैं जब-जब, विजयी सदा हुआ है जीवन ।
चाहे धूल रुधिर से लथपथ, चाहे घावों से जर्जर तन ।
अंतिम विजय हमारी होगी, रोम-रोम हुंकार रहा है ॥४॥

राष्ट्रभक्ति के अमर सिपाही, हमको देश निहार रहा है ।
हमको देश पुकार रहा है ॥

!! भारत माता की जय !!

Hum Swadesh Ke Sapoot (हम स्वदेश के सपूत)

हम स्वदेश के सपूत, आज पग बढ़ा चलें ॥ध्रु॥

हाथ में अंगार है,
हर चरण पहाड़ है,
हम बढ़े जिधर उधर, आंधियाँ ही बढ़ चलें ॥१॥

मातृभूमि तू न डर
धीर धर विश्वास कर,
शत्रु शीश बीनती है, यह दुधार जब चले ॥२॥

है यहाँ कलह न द्वेष,
एक प्राण है स्वदेश,
जय हमारे हाथ में है, हम सभी विचार लें ॥३॥

हम स्वदेश के सपूत, आज पग बढ़ा चलें ॥

!! भारत माता की जय !!

Lakshya Na Ojhal (लक्ष्य न ओझल)

लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल ।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥ध्रु॥

सबकी दौलत, सबकी मेहनत, सबकी हिम्मत एक ।
सबकी ताकत, सबकी इज्ज़त, सबकी किस्मत एक ।
शूल बिछे अगणित राहों में, राह बनाता चल ॥१॥

छोड़ दे नैया अरे खेवैया, मझधार तुम्हारा डेरा ।
खून-पसीना बहा के अपना, ला फिर नया सवेरा ।
सीमाओं पर आज मचलता, देशभक्ति का बल ॥२॥

नूतन वेदी बलिदानों की, मांगे आज जवानी ।
देनी ही हम सबको होगी, देश हेतु कुर्बानी ।
बलिदानों का ढेर लगे, इतिहास बनाता चल ॥३॥

लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल ।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥

!! भारत माता की जय !!

Humko Apane Bhaarat (हमको अपने भारत)

हमको अपने भारत की, माटी से अनुपम प्यार है ।
माटी से अनुपम प्यार है, माटी से अनुपम प्यार है ॥ध्रु॥

इस धरती पर जन्म लिया था, दशरथ-नंदन राम ने ।
इस धरती पर गीता गायी, यदुकुल-भूषण श्याम ने ।
इस धरती के आगे झुकता, मस्तक बारम्बार है ॥१॥

इस धरती की गौरव-गाथा, गायी राजस्थान ने ।
इसे पुनीत बनाया अपने, वीरों के बलिदान ने ।
मीरा के गीतों की इसमें, छिपी हुई झंकार है ॥२॥

कण-कण मंदिर इस माटी का, कण-कण में भगवान है ।
इस माटी से तिलक करो, यह अपना हिन्दुस्थान है ।
हर हिंदु का रोम-रोम, भारत का पहरेदार है ॥३॥

हमको अपने भारत की, माटी से अनुपम प्यार है ।
माटी से अनुपम प्यार है, माटी से अनुपम प्यार है ॥

!! भारत माता की जय !!

Naman Hai (नमन है)

नमन है इस मातृ भू को, विश्व का सिरमौर भारत ।
तप-तपस्या-साधना का, शौर्य का परिणाम भारत ॥ध्रु॥

स्वर लहरियां उठ रहीं हैं, देश तब आराधना की ।
कोटि हृदयों में उठी है, चाह तेरी साधना की ।
इक-इक अलौकिक पुंज-सी हो, छवि तेरी निष्काम भारत ॥१॥

ऋषि-मुनि की यही धरा है, देव-गण की ये स्थली है ।
त्याग-करुणा-वीरता की, यहाँ पर संस्कृति पली है ।
भरत भारत, बुद्ध भारत, कृष्ण भारत, राम भारत ॥२॥

राष्ट्र का निर्माण पोषण, बुद्धि है इसकी कहानी ।
आन पर बलिदान की है, प्रेरणामय यह निशानी ।
राव केशव के सपन का, तीर्थ चारों धाम भारत ॥३॥

संगठन का मंत्र गुंजित, शौर्यमय आनंद छाया ।
हर ह्रदय को कर प्रफुल्लित, जागरण का पर्व आया ।
नव उषा से अब सुगन्धित, हो उठे हर ग्राम भारत ॥४॥

नमन है इस मातृ भू को, विश्व का सिरमौर भारत ।
तप-तपस्या-साधना का, शौर्य का परिणाम भारत ॥


!! भारत माता की जय !!

Veer Sapooton Deshwaasiyon (वीर सपूतों देशवासियों)

वीर सपूतों देशवासियों, माँ ने हमें पुकारा है ।
माता ने हमें पुकारा है, यह हिन्दुस्थान हमारा है ॥ध्रु॥

जागो अपनी संस्कृति अपने, पूज्य राष्ट्र से प्रेम करो ।
इसके गत वैभव से अपने, युग का थोड़ा मेल करो ।
सोचो क्या यह वही प्रेम से, पूरित राष्ट्र हमारा है ॥१॥

राम यहीं पर, कृष्ण यहीं पर, और यहीं पर बुद्ध हुए ।
सीता-सावित्री-चेनम्मा, और यहीं पर पुरु हुए ।
गीता, मानस और वेद की, बहती पावन धारा है ॥२॥

ध्यान करो उनका जो हर पल, सीमा पर हैं डटे हुए ।
मातृभूमि की रक्षा में हैं, सीना ताने खड़े हुए ।
सोचो किनके वंशज हैं हम, क्या इतिहास हमारा है ॥३॥

वीर सपूतों देशवासियों, माँ ने हमें पुकारा है ।
माता ने हमें पुकारा है, यह हिन्दुस्थान हमारा है ॥


!! भारत माता की जय !!

Hindu Jage To (हिंदु जगे तो)

हिंदु जगे तो विश्व जगेगा, मानव का विश्वास जगेगा । - २
भेद भावना तामस हटेगा, समरसता का अमृत बरसेगा ।
हिंदु जगेगा, विश्व जगेगा ॥ध्रु॥

हिंदु सदा से विश्व-बन्धु है, जड़-चेतन अपना माना है ।
मानव, पशु, तरु, गिरि, सरिता में, एक ब्रह्म को पहचाना है ।
जो चाहे जिस पथ से आए, साधक केंद्र-बिंदु पहुंचेगा ॥१॥

इसी सत्य को विविध पक्ष से, वेदों में हमने गाया था ।
निकट बिठाकर इसी तत्त्व को, उपनिषदों में समझाया था ।
मंदिर, मठ, गुरुद्वारे जाकर, यही ज्ञान सत्संग मिलेगा ॥२॥

हिंदु धर्म वह सिन्धु अतल है, जिसमें सब धारा मिलती हैं ।
धर्म, अर्थ अरु काम, मोक्ष की, किरणें लहर-लहर खिलती हैं ।
इसी पूर्ण में पूर्ण जगत का, जीवन मधु सम्पूर्ण फलेगा ॥३॥

इस पावन हिंदुत्व सुधा की, रक्षा प्राणों से करनी है ।
जग को आर्यशील की शिक्षा, निज जीवन से सिखलानी है ।
द्वेष-त्वेष भय सभी हटाने, पाञ्चजन्य फिर से गूंजेगा ॥४॥

हिंदु जगे तो विश्व जगेगा, मानव का विश्वास जगेगा ।
भेद भावना तामस हटेगा, समरसता का अमृत बरसेगा ।
हिंदु जगेगा, विश्व जगेगा ॥


!! भारत माता की जय !!

Janmabhoomi Karmabhoomi (जन्मभूमि कर्मभूमि)

जन्मभूमि कर्मभूमि, स्वर्ग से महान है ।
अनादि है, अनंत है, सृष्टि का विधान है ॥ध्रु॥

ग्रीक, हूण, शक, यवन, टूटते थे भूमि पर ।
हारते थे हौसले, पंचनदी के तीर पर ।
पता नहीं कहाँ हैं वे, अतीत में समा गए ।
काल के प्रवाह में, निज को वो मिटा गए ।
भव्य दिव्य लक्ष्य की, प्राप्ति ही विराम है ॥१॥

छोड़ कर हटे जहाँ, शक्ति शौर्य साधना ।
छा गयी स्वदेश में, स्वार्थ क्षुद्र भावना ।
द्रोही तब पनप उठे, जगी प्रचंड वासना ।
शत्रु फिर डटे यहाँ, स्वत्व की प्रताड़ना ।
देशभक्ति फिर जगे, देश का ये प्राण है ॥२॥

जाति-वेश भिन्न-भिन्न, पंथ भी अनेक हैं ।
भावना अभिन्न है, धर्म-मर्म एक है ।
पूर्वजों का खून एक, आज सबको जोड़ता ।
कौन है कपूत वह, देश को जो तोड़ता ।
अखंड देश की धरा, सुना रही ये गान है ॥३॥

अधर्म की घिरी घटा, कुचक्र हैं पनप रहे ।
पुण्य धर्म-भूमि पर, अधर्म-कर्म बढ़ रहे ।
व्यथा विशाल देश की, आज हम समझ सकें ।
शुद्ध राष्ट्र-भाव से, देश यह महक उठे ।
राष्ट्र जागरण करो, यही समय की मांग है ॥४॥

जन्मभूमि कर्मभूमि, स्वर्ग से महान है ।
अनादि है, अनंत है, सृष्टि का विधान है ॥


!! भारत माता की जय !!

Hum Karein Raashtra Aaraadhan (हम करें राष्ट्र आराधन)

हम करें राष्ट्र आराधन, हम करें राष्ट्र आराधन,
तन से मन से धन से, तन-मन-धन-जीवन से,
हम करें राष्ट्र आराधन ॥ध्रु॥

अंतर से मुख से कृति से, निश्छल हो निर्मल मति से,
श्रद्धा से मस्तक नत से, हम करें राष्ट्र अभिवादन,
हम करें राष्ट्र अभिवादन ॥१॥

अपने हँसते शैशव से, अपने खिलते यौवन से,
प्रौढ़ता - पूर्ण जीवन से, हम करें राष्ट्र का अर्चन,
हम करें राष्ट्र का अर्चन ॥२॥

अपने अतीत को पढ़कर, अपना इतिहास उलटकर,
अपना भवितव्य समझकर, हम करें राष्ट्र का चिंतन,
हम करें राष्ट्र का चिंतन ॥३॥

है याद हमें युग-युग की, जलती अनेक घटनाएँ,
जो माँ के सेवा-पथ पर, आईं बन कर विपदाएँ ।
हमने अभिषेक किया था, जननी का अरिशौणित से,
हमने श्रृंगार किया था, माता का अरिमुंडों से ।
हमने ही उसे दिया था, सांस्कृतिक उच्च सिंहासन,
माँ जिस पर बैठी सुख से, करती थी जग का शासन ।
अब कालचक्र की गति से, वह टूट गया सिंहासन, - २
अपना तन-मन-धन देकर, हम करें पुनर्संस्थापन ॥
हम करें राष्ट्र आराधन ॥४॥

हम करें राष्ट्र आराधन, हम करें राष्ट्र आराधन,
तन से मन से धन से, तन-मन-धन-जीवन से ।
हम करें राष्ट्र आराधन ॥


!! भारत माता की जय !!

Yah Kal-Kal Chhal-Chhal Bahatee (यह कल-कल छल-छल बहती)

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगाधारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा ।
यह पुण्य-प्रवाह हमारा ॥

हम इसके लघुतम जल-कण, बनते-मिटते हैं क्षण-क्षण ।
अपना अस्तित्व मिटाकर, तन-मन-धन करते अर्पण ।
बढ़ते जाने का शुभ प्रण, प्राणों से हमको प्यारा ॥१॥

इस धारा में मिल-जुल कर, वीरों की राख बही है ।
इस धारा में कितने ही, ऋषियों ने शरण गही है ।
इस धारा की गोदी में, खेला इतिहास हमारा ॥२॥

यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्र-प्रवाह प्रबल है ।
शुभ संस्कृति का परिचायक, भारात माँ का आँचल है ।
हिन्दू की चिर जीवन का, मर्यादा धर्म सहारा ॥३॥

क्या इसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएँ ।
कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बन कर आए ।
ढह जाएंगे गिरि-पर्वत, काँपे भूमंडल सारा ॥४॥

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगाधारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा ।
यह पुण्य प्रवाह हमारा ॥


! भारत माता की जय !!

Saturday, February 6, 2010

Ghalat Mat Kadam Uthaao (ग़लत मत कदम उठाओ)

ग़लत मत कदम उठाओ,
सोच कर चलो, विचार कर चलो,
राह की मुसीबतों को पार कर चलो, पार कर चलो ॥ध्रु॥

हम पे जिम्मेदारियां हैं देश की बड़ी,
हम न बदलें अपनी चाल हर घड़ी-घड़ी ।
आग ले चलो, चिराग ले चलो,
ये मस्तियों के रंग भरे भाग ले चलो ॥१॥

मंजिल के मुसाफिर तुझे क्या राह की फ़िकर,
चट्टान पर तूफ़ान के झोंकों का क्या असर ।
ये कौन आ रहा, अन्धेरा छा रहा,
ये कौन मंजिलों पे मंजिलें उठा रहा ॥२॥

मिल के चलो एक साथ अब नहीं रुको,
बढ़ के चलो एक साथ अब नहीं झुको ।
साज़ करेगा, आवाज़ करेगा,
हमारी वीरता पे जहां नाज़ करेगा ॥३॥

ग़लत मत कदम उठाओ,
सोच कर चलो, विचार कर चलो,
राह की मुसीबतों को पार कर चलो, पार कर चलो ॥

!! भारत माता की जय !!

Dharatee Kee Shaan (धरती की शान)

धरती की शान तू है मनु की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे ।
मनुष्य तू बड़ा महान है,
भूल मत ! मनुष्य तू बड़ा महान है ॥ध्रु॥

तू जो चाहे पर्वत-पहाड़ों को फोड़ दे ।
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे ।
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे ।
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे ।
अमर तेरे प्राण मिला तुझको वरदान,
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे ॥१॥

नयनों से ज्वाल तेरी गति में भूचाल ।
तेरी छाती में छुपा महाकाल है ।
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरी सा भाल ।
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है ।
निज को तू जान ज़रा शक्ति पहचान,
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे ॥२॥

धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर ।
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले ।
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके ।
तू जो अगर हिम्मत से काम ले ।
गुरु सा मतिमान पवन सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊंची उड़ान है रे ॥३॥

धरती की शान तू है मनु की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे ।
मनुष्य तू बड़ा महान है,
भूल मत ! मनुष्य तू बड़ा महान है ॥

!! भारत माता की जय !!

Desh Humein Detaa Hai Sab Kuchh (देश हमें देता है सब कुछ)

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें ॥ध्रुपद॥

सूरज हमें रौशनी देता, हवा नया जीवन देती है ।
भूख मिटाने को हम सबकी, धरती पर होती खेती है ।
औरों का भी हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें ॥१॥

गर्मी की तपती दुपहर में, पेड़ सदा देते हैं छाया ।
सुमन सुगंध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला ।
त्यागी तरुओं की जीवन से, हम परहित कुछ करना सीखें ॥२॥

जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएं, जो चुप हैं उनको वाणी दें ।
बिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएं, समरसता का भाव जगा दें ।
हम मेहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखें ॥३॥

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें ॥

!! भारत माता की जय !!

Sangathan Gadhe Chalo (संगठन गढ़े चलो)

संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥ध्रु॥

युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो ।
भूल कर भी मुख में जाति-पंथ की न बात हो ।
भाषा-प्रांत के लिए कभी ना रक्तपात हो ।
फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो ॥१॥

आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार ।
हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार ।
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुरा के सब सहेंगे हम ।
देश के लिए सदा जिएंगे और मरेंगे हम ।
देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो ॥२॥

संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किये चलो ॥

!! भारत माता की जय !!

Jananee-Janmabhoomi Swarg Se Mahaan Hai (जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है)

जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥

इसके कण-कण पे लिखा राम-कृष्ण नाम है ।
हुतात्माओं के रुधिर से भूमि शस्य-श्याम है ।
धर्म का ये धाम है, सदा इसे प्रणाम है ।
स्वतंत्र है यह धरा, स्वतंत्र आसमान है ॥१॥

इसके आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े ।
इसके सामने जो ज़ुल्म के पहाड़ हों खड़े ।
शत्रु सब जहान हो, विरुद्ध आसमान हो ।
मुकाबला करेंगे जब तक जान में ये जान है ॥२॥

इसकी गोद में हज़ारों गंगा-यमुना झूमती ।
इसके पर्वतों की चोटियाँ गगन को चूमती ।
भूमि ये महान है, निराली इसकी शान है ।
इसके जय-पताके पे लिखा विजय-निशान ॥३॥

इसके वास्ते ये तन है, मन है और प्राण है ।
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥
!! भारत माता की जय !!

Chandan Hai Is Desh Kee Maatee (चन्दन है इस देश की माटी)

चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥ध्रु॥

हर शरीर मंदिर-सा पावन, हर मानव उपकारी है ।
जहाँ सिंह बन गए खिलौने, गाय जहाँ माँप्यारी है ।
जहाँ सवेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है ॥१॥

जहाँ कर्म से भाग्य बदलता, श्रम-निष्ठा कल्याणी है ।
त्याग और तपकी गाथाएँगाती कवी की वाणी है ।
ज्ञान जहाँ का गंगाजल-सा, निर्मल है, अविराम है ॥२॥

जिसके सैनिक समर-भूमि में, गाया करते गीता हैं ।
जहाँ खेत मिएँ हल के नीचे खेला करती सीता है ।
जीवन का आदर्श जहाँ पर परमेश्वर का धाम है ॥३॥

चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥

!! भारत माता की जय !!