शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ||
द्वेष की ज्वाला जगत की नित जलाना जानती है |
किन्तु सुरसरिस्नेह की मधुबन खिलाना जानती है ||
छेड़ती है ह्रदय वीणा के सभी वे तार हैं ||२||
भरत जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा |
है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा ||
भक्ति से हम हों समर्पित, बस यही अधिकार है ||४||
प्रेम जो केवल समर्पण ही समर्पण जानता है |
और उसमें ही स्वयं की धन्यता बस मानता है ||
दिव्य ऐसे प्रेम में ईश्वरस्वयं साकार है || १||
किन्तु सुरसरिस्नेह की मधुबन खिलाना जानती है ||
छेड़ती है ह्रदय वीणा के सभी वे तार हैं ||२||
दीप में है स्नेह जब तक वह तभी तक ज्योति देता |
स्नेह से जब शून्य होता विरत तम को कौन करता ||
नित्य ज्योतिर्मय हमारा ह्रदय स्नेहागार है ||३||
है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा ||
भक्ति से हम हों समर्पित, बस यही अधिकार है ||४||
कोटि आँखों से निरंतर आज आंसू बह रहे हैं |
आज अगणित बंधु दुःसह यातनाएं सह रहे हैं ||
दुःख हरे सुख दे सभी की एक यह आचार है ||५||
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!! भारत माता की जय !!
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