जिसने मरना सीख लिया है, जीने का अधिकार उसी को |
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को ||ध्रु||
हँस-हँस कर इक मस्ती लेकर, जिसने सीखा है बलि होना |
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को ||ध्रु||
जिसने गीत सजाए अपने, तलवारों के झन-झन स्वर पर |
जिसने विप्लव राग अलापे, रिमझिम गोली के वर्षण पर ||
जो बलिदानों का प्रेमी है, जगती का प्यार उसी को ||१||
हँस-हँस कर इक मस्ती लेकर, जिसने सीखा है बलि होना |
अपनी पीड़ा पर मुस्काना, औरों के कष्टों पर रोना ||
जिसने सहना सीख लिया है, संकट है, त्यौहार उसी को ||२||
दुर्गमता लख बीहड़ पथ की, जो न कभी भी रुका कहीं पर |
अनगिनती आघात सहे पर, जो न कभी भी झुका कहीं पर ||
झुका रहा है मस्तक अपना, यह सारा संसार उसी को ||३||
जिसने मरना सीख लिया है, जीने का अधिकार उसी को |
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को ||
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!! भारत माता की जय !!
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